Chhattisgarh : हाथी प्रभावित 30 गांव के ग्रामीण सड़कों पर उतरे, मुआवजे की मांग को लेकर वन कार्यालय घेरा

गरियाबंद: गरियाबंद के मैनपुर में आज हाथी प्रभावित इलाके के ग्रामीण, प्रभावित किसान और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के नेतृत्व में उचित मुआवजा और क्षेत्र को हाथी विहीन करने के साथ 10 सूत्रीय मांग को लेकर जंगी प्रदर्शन हुआ। लगभग 30 गांवों के 2 हजार से भी ज्यादा महिला-पुरुष पहले मैनपुर दुर्गा मंच के सामने एकत्रित हुए, फिर वन कार्यालय के घेराव के लिए रैली के शक्ल में निकले। लेकिन तैनात भारी पुलिस बल ने ग्रामीणों को प्रवेश द्वार के सामने रोक दिया। इस दौरान पुलिस बल और प्रदर्शनकारियों के बीच भारी झूमाझटकी हुई। अंत में उपनिदेशक वरुण जैन समेत अन्य अमला वन परिसर के बाहर आए वन अधिकारियों से ग्रामीण बातचीत के लिए तैयार हुए।

चर्चा की शुरुआत करते हुए वरुण जैन ने ग्रामीणों को संबोधित करते हुए हाथी प्रभावित इलाके में सुरक्षा के अलावा हाथियों के विचरण के पर्याप्त इंतजाम करने की दलील दी। उन्होंने हाथियों के विचरण इलाके को सीमित करने के अलावा प्रभावित ग्रामीणों के लिए रोजगार सृजन, अनहोनी न हो इसलिए बनाए गए हाथी ऐप, 24 घंटे काम करने वाले ट्रैकर और हाथी मित्रों के साथ जान जोखिम में डालकर दिन-रात मेहनत कर रहे वन अमले के प्रयासों के बारे में विस्तार से बताते हुए समझाइश की कोशिश की। वरुण जैन ने कहा कि ग्रामीणों की मांगों से शासन स्तर पर अवगत कराया जाएगा।

15 दिनो में बात नहीं मानी गई तो होगा गांव-गांव में आंदोलन

ग्रामीण मृतक परिवार को 50 लाख के अलावा वर्तमान दर पर फसल का आंकलन कर प्रति एकड़ 75 हजार रुपये की मांग पर अड़े हुए हैं। आंदोलन का नेतृत्व कर रहे जिला पंचायत सदस्य लोकेश्वरी नेताम एवं संजय नेताम ने बताया कि 15 दिवस में उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो ग्राम स्तर पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो जाएगा। लोकेश्वरी नेताम ने कहा कि फसल नुकसान पर विभाग 9 हजार रुपये प्रति एकड़ क्षतिपूर्ति दे रहा है। पिछले कई सालों से यह देते आ रहा है, जबकि हमने 75 हजार प्रति एकड़ मुआवजा की मांग रखी है। मकान टूटने और जनहानि पर भी मुआवजा मांगा गया है। लंबित मुआवजा की मांग भी रखी गई है। संजय नेताम ने कहा कि हाथी विचरण इलाके का दायरा तय नहीं है, दिन-रात ग्रामीण भय में जी रहे हैं। 10 सूत्रीय मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा गया, लेकिन अफसरों से केवल कोरा आश्वासन मिला। इसलिए आंदोलन की रणनीति आगे भी तय की जाएगी।

Nikhil Vakharia

Nikhil Vakharia

मुख्य संपादक