कोरोना योद्धाओं की रैली पर रोक, मैदान को बनाया अस्थाई जेल – NHM कर्मचारियों का विरोध तेज

रायगढ़ : छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत कार्यरत 16,000 कर्मचारी, जिनमें रायगढ़ जिले के 550 से अधिक स्वास्थ्यकर्मी शामिल हैं, अपनी 10 सूत्रीय मांगों के लिए अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। पूर्व सूचना के बावजूद रैली की अनुमति न देकर, रामलीला मैदान का गेट बंद कर कर्मचारियों को कैद करने का यह कदम किसके आदेश पर हुआ? क्या सरकार उन कोरोना योद्धाओं को अपमानित करने पर तुली है, जिन्होंने महामारी में जान जोखिम में डालकर प्रदेश की सेवा की?

हड़ताल से स्वास्थ्य सेवाएं ठप हैं। ओपीडी, इमरजेंसी, संस्थागत प्रसव, नवजात शिशु वार्ड, पोषण आहार केंद्र, रूटीन टीकाकरण, टीबी, मलेरिया, कुष्ठ रोग की जांच और दवाइयां, शुगर-ब्लड टेस्ट, ट्रूनाट, सीबीनाट, बलगम टेस्ट, नेत्र जांच, स्कूल और आंगनबाड़ी स्वास्थ्य परीक्षण, और ऑनलाइन डेटा एंट्री पूरी तरह बंद हैं। कई ग्रामीण और शहरी स्वास्थ्य केंद्रों में तालाबंदी है, जिससे मरीजों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। क्या सरकार को पता है कि उसकी बेरुखी से अब तक 28 लोगों की जान जा चुकी है? या यह ‘स्वास्थ्य मिशन’ का नया लक्ष्य है कि मरीज इलाज के बजाय इंतजार में मरें?

आज प्रतीकात्मक काले परिधान और चिन्ह के साथ विशाल रैली निकाली गई, लेकिन जिला भाजपा कार्यालय, महात्मा गांधी को माल्यार्पण, और विधायक निवास तक ज्ञापन देने की अनुमति न देकर क्या प्रशासन लोकतंत्र का गला घोंट रहा है? शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी मिनी स्टेडियम में 550 से अधिक कर्मचारियों का प्रदर्शन जारी है, जहां “हमारी भूल-कमल का फूल” जैसे नारे सरकार के वादाखिलाफी पर करारा तंज कस रहे हैं।

मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और वित्त मंत्री ने वादा किया था कि सत्ता में आने पर 100 दिनों में नियमितीकरण के लिए कमेटी बनेगी। लेकिन 20 महीने और 160 से अधिक ज्ञापन बाद भी कोई कदम नहीं उठा। क्या ये वादे सिर्फ वोट की फसल काटने के लिए थे? या ‘कमल का फूल’ अब कर्मचारियों के लिए कांटों का ताज बन गया है?

प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अमित कुमार मिरी, डॉ. रवि शंकर दीक्षित और प्रवक्ता पूरन दास ने धरना स्थल पर कहा, “मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री से बार-बार मुलाकात के बाद भी मांगों पर कार्रवाई नहीं हुई। स्वीकृत आदेशों को ठंडे बस्ते में डाल कर्मचारियों को आंदोलन के लिए मजबूर किया गया। क्या सरकार मानती है कि 20 साल से शोषित कर्मचारियों का योगदान सिर्फ तालियों तक सीमित था?”

जिला अध्यक्ष शकुंतला एक्का ने चेतावनी दी, “यदि सरकार ने जल्द ठोस कदम नहीं उठाए और आंदोलन दबाने की कोशिश की, तो इसे और उग्र किया जाएगा। क्या प्रशासन जानता है कि 6,239 स्वास्थ्य संस्थाएं प्रभावित हैं? या सरकार की योजना यही है कि स्वास्थ्य सेवाएं ठप कर कर्मचारियों को ही खत्म कर दिया जाए?”

*10 सूत्रीय मांगें (जिन्हें सरकार ने कूड़ेदान में डाला):*
1. संविलियन/स्थायीकरण – 20 साल का शोषण क्या कम है?
2. पब्लिक हेल्थ कैडर की स्थापना – स्वास्थ्य कैडर की जरूरत सरकार को क्यों नहीं?
3. ग्रेड-पे का निर्धारण – वेतन वृद्धि का वादा कहां खो गया?
4. कार्य मूल्यांकन में पारदर्शिता – बिना जांच टर्मिनेशन की धमकी क्यों?
5. लंबित 27% वेतन वृद्धि – क्या यह राशि चुनावी खर्च में उड़ा दी गई?
6. नियमित भर्ती में सीट आरक्षण – या एनएचएम कर्मचारी हमेशा अस्थाई रहेंगे?
7. अनुकम्पा नियुक्ति – शहीदों के परिवारों का सम्मान कब?
8. मेडिकल और अन्य अवकाश – जिला स्तर पर अवकाश क्यों नहीं?
9. स्थानांतरण नीति – सहमति के बिना केंद्रीकृत नीति का क्या फायदा?
10. 10 लाख कैशलेस चिकित्सा बीमा – कोरोना योद्धाओं को बीमा क्यों नहीं?

संघ सरकार से तत्काल वार्ता और लिखित आश्वासन की मांग करता है। यदि मांगें पूरी नहीं हुईं, तो आंदोलन और तेज होगा। स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ने वाले प्रभाव की जिम्मेदारी पूरी तरह शासन की होगी। क्या सरकार अब भी चुप रहेगी, या ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन’ को ‘राष्ट्रीय शोषण मिशन’ में तब्दील कर देगी?

Nikhil Vakharia

Nikhil Vakharia

मुख्य संपादक