अखंड सौभाग्य, उमंग और स्नेह के प्रतीक, पर्व हरतालिका तीज के अवसर पर सुहागिन माता, बहन बेटियों ने रखा व्रत…..

संवाददाता – धनकुमार कौशिक, बिहान न्यूज़ 24×7 बलौदा बाजार

बलौदाबाजार(डोंगरा)!! छत्तीसगढ़ विशिष्ट सांस्कृतिक धरोहरों से युक्त राज्य है। यहां के पर्व – त्यौहार धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक और विशिष्ट क्षेत्रीय पहचानो से युक्त हैं। इसी में से तीजा –पोरा ऐसे लोक पर्व है जिसमें तीजा स्त्री – जीवन और छत्तीसगढ़ की संस्कृत में मातृशक्ति के महत्व व मान सम्मान को प्रदर्शित करता है, तथा पोरा कृषि जीवन, पशुधन और श्रम के सम्मान का उत्सव है। पोरा – तिहार पोरा पर्व भादो माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है । पोरा का अर्थ पोर फूटने अर्थात् धान की बोलियों में फल लगने के आरंभ से है। धान की बालियों में पोर फुट आने के कारण ही इसे पोरा कहते हैं। छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान प्रदेश है कृषि में पशुधन की भूमिका अत्यंत ही महत्वपूर्ण होती है अतः इस दिन बैलों के प्रति समर्पण व सम्मान प्रदर्शित करने के लिए बैलों को नहला-धूलाकर श्रृंगार कर पूजा अर्चन की जाती है।पोरा की विशिष्टता है मिट्टी के नंदिया बैल चक्कियों और घरेलु बर्तनो की पूजा जिसका उपयोग बच्चे खेलने के लिए करते है। यह खेल मात्र नही है इसके माध्यम से बच्चों को खेती के संस्कार समझाए जाते है, तथा भविष्य के जीवन कौशल की सहज शिक्षा प्रदान की जाती है। तीजा – त्योहार यह त्यौहार भादो माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है , तृतीय होने के कारण इसे तीजा कहते हैं साथ ही पोरा तिहार के तीसरे दिन मनाने के कारण भी इसे तीजा कहा जाता है। तीजा का संबंध हरितालिका तीज से है जिसका उल्लेख स्कंद पुराण और पद्म पुराण में मिलता है इसमें माता पार्वती द्वारा भगवान शिव को पाने हेतु कठोर उपवास और तप का उल्लेख है। बेटी माई के तिहार तीजा छत्तीसगढ़ में अपनी विशेषता से युक्त है, इसे बेटी– माई के तिहार के रूप में जाना जाता है तीजा में विवाहित स्त्रियों को मायके में आमंत्रित किया जाता है एक प्रकार से तीज विवाहित महिलाओं का मायके से विशिष्ट संबंध को प्रदर्शित करता है तीजा में आमंत्रित नहीं करने पर इसे मायके से संबंध विच्छेद के रूप में देखा जाता है, तथा महिलाएं छत्तीसगढ़ की परंपरा के अनुसार जमीन– जायदाद में बराबरी भी मांग कर सकती हैं अतः तीजा मातृशक्तियों के लिए मान सम्मान का पर्व है। करूभात तीजा का आरंभ करूभात से होता है, तीजा उपवास के एक दिन पूर्व महिलाएं करेले की सब्जी व भात खाती हैं जिसे करु भात कहते हैं, करेले की तासीर ठंडी होती है जो उपवास में पित्त को नियंत्रित करती है साथ ही करेला खाने से प्यास भी कम लगती है । निर्जला उपवास इस दिन महिलाएं भगवान महादेव और माता गौरा की प्रतिमा का निर्माण कर विभिन्न व्यंजन जैसे ठेठरी, खुरमी, पुड़ी का भोग लगाकर पूजन करती हैं तथा रात्रि जागरण कर अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। बासी–भात एवं फलाहार* त्यौहार के तीसरे दिन महिलाएं महादेव व माता गौरा के प्रतिमाओं का पूजन कर विसर्जन करती हैं, तथा बासी–भात, सिंघाड़े या ऋतु फल खाकर पानी पीकर अपना व्रत तोड़ती हैं इस दिन मायके से उपहार प्राप्त करती हैं तथा आमंत्रित परिवारजनों के घरों में बासी–भात खाने एवं फलाहार करने जाती है। इसप्रकार छत्तीसगढ़ के तीजा और पोरा त्यौहार केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि इतिहास और संस्कृति के जीवंत प्रतीक हैं। दोनों पर्व मिलकर छत्तीसगढ़ी जीवन दर्शन को संजोते हैं, जहाँ धर्म, लोकगीत, कृषि और सामूहिकता का अनूठा संगम मिलता है।

Nikhil Vakharia

Nikhil Vakharia

मुख्य संपादक