देवा शरीफ की होली: 100 साल से हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल, जानें कैसे शुरू हुई यह परंपरा

निखिल वखारिया

होलिका के रंग में एकता का उजाला, यूपी की दरगाह पर मनती है अनोखी होली

उत्तर प्रदेश में होली और जुमा की नमाज को लेकर विवाद की चर्चाएं हो रही हैं, लेकिन इसी प्रदेश में एक ऐसी दरगाह भी है जो सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल बनी हुई है। बाराबंकी जिले में स्थित हाजी वारिस अली शाह की दरगाह, देवा शरीफ पिछले 100 वर्षों से हिंदू-मुस्लिम एकता की प्रतीक बनी हुई है, जहां हर साल लोग धर्म, जाति और संप्रदाय से ऊपर उठकर गुलाल और गुलाब के रंगों में सराबोर हो जाते हैं।


कैसे शुरू हुई देवा शरीफ की होली की परंपरा?

देवा शरीफ की इस खास होली की शुरुआत ब्रिटिश काल के दौरान हुई थी। यह परंपरा सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के जमाने से चली आ रही है, जो भाईचारे और प्रेम के प्रतीक माने जाते थे। वे हमेशा इंसानियत को प्राथमिकता देते थे और उनकी यह सोच आज भी यहां की फिजाओं में जिंदा है।

हर साल होली के मौके पर देश-विदेश से श्रद्धालु इस दरगाह पर आते हैं और आपसी प्रेम का संदेश देने के लिए एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। इस मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं, जिसमें कव्वाली, सूफी संगीत और भजन-कीर्तन गूंजते हैं।


राजा पंचम सिंह ने बनवाई थी दरगाह

हाजी वारिस अली शाह की लोकप्रियता हिंदू और मुस्लिम समुदाय दोनों में थी। उनकी शिक्षाओं से प्रभावित होकर राजा पंचम सिंह ने उनकी मृत्यु के बाद इस दरगाह का निर्माण करवाया। यह दरगाह आज भी प्रेम और सद्भावना की जीवंत मिसाल बनी हुई है।


वारिस अली शाह का संदेश: ‘जो रब है वही राम’

हाजी वारिस अली शाह ने पूरी जिंदगी धर्म और जाति से ऊपर उठकर मानवता की सेवा की। उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि ईश्वर एक है—”जो रब है वही राम।” यही कारण है कि उनकी दरगाह पर आने वाला हर व्यक्ति धर्म की दीवारों को भूलकर सिर्फ प्रेम और सौहार्द्र के रंग में रंग जाता है।


कैसे पहुंचे देवा शरीफ दरगाह?

अगर आप होली या किसी अन्य मौके पर इस दरगाह की यात्रा करना चाहते हैं, तो यह बाराबंकी जिले के देवा कस्बे में स्थित है।

  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: बाराबंकी जंक्शन (13 किमी दूर)
  • सड़क मार्ग: लखनऊ और बाराबंकी से आसानी से ऑटोरिक्शा, टैक्सी या बस से पहुंच सकते हैं।

देवा शरीफ की यह होली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि इंसानियत और भाईचारे की अनमोल धरोहर है, जो हर साल हजारों लोगों को प्रेम और एकता के रंग में रंग देती है।


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Nikhil Vakharia

Nikhil Vakharia

मुख्य संपादक

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