संवाद दाता अरविंद कोठारी
राजसमंद झीलवाड़ा नगर में
वर्षों बाद, चार दिवसीय प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतर्गत चबुतरे के नवनिर्माण कार्य के साथ वि.सं. 2082, वैशाख सुदी 15, दिनांक 12 मई 2025 सोमवार को शुभमुहूर्त में सकल श्रीसंघ तथा सभी ग्रामजनों की उपस्थिति में श्रीसती माताजी का प्रतिष्ठा महोत्सव धूमधाम पूर्वक सुसम्पन्न होने जा रहा है
श्री सती माताजी का जीवन चरित्र अतीत के झरोखे से…
श्री सतीमाताजी का संपूर्ण जीवन श्रद्धा और त्याग की एक प्रेरणादायक कहानी है। उनका जन्म झीलवाड़ा निवासी श्री गणेशलालजी गुलाबचंदजी कोठारी के घर हुआ था।
समयोपरांत श्री गुलाबचंदजी केवसिया कोठारी की कुल दिपिका की सगाई झीलवाड़ा के ही एक युवक के साथ तय हुई, परंतु दुर्भाग्यवश सगाई के कुछ दिनों बाद ही उस युवक का आकस्मिक निधन हो गया।
लड़की ने दिवंगत युवक का चेहरा देखने की इच्छा जाहिर की, तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार परिवारिक सदस्यों ने लड़की को अनुमति नहीं दी, बल्कि उसे घर के ही एक कमरे में बंद कर दरवाजे के बाहर सांकल व ताला लगा दिया गया।
दुसरी तरफ, गांववाले लड़के के अंतिम संस्कार की तैयारी के लिए उसे श्मशान घाट ले जाने लगे, इधर कमरे में बंद होने के बावजूद उस लड़की ने अपने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया कि चाहें जो हों, अब वह इस दुनिया में अपने पतिदेव के बिना अकेली हर हाल में नहीं रहेगी।
उसकी अटूट इच्छाशक्ति, वृढ़ संकल्प और इष्टदेवों के प्रभाव से कमरे के दरवाजे की सांकल और ताला स्वतः ही टूट गए। वह लडकी तुरंत श्मशान घाट की ओर चल पड़ी, वहां पहुंची तब तक गांववालों ने दिवंगत युवक का अग्नि संस्कार शुरू कर दिया था।
वहां पहुंचते ही, उस लडकी ने द्रुतगति से जलती हुई चिता में प्रवेश किया और स्वयं को अग्नि की धधकती ज्वाला को समर्पित कर दिया। अचानक से घटित इस दृश्य को देखकर वहां खड़े सभी लोग भयभीत व बदहवास थे। उस घटनाक्रम के बाद केवसिया कोठारी परिवार झीलवाड़ा के परिजन उस लड़की को श्री सती माता के रूप में श्रद्धापूर्वक मानने लगे और आज भी हर पारिवारिक प्रसंग पर उन्हें याद कर सादर नमन करते हैं।
उपलब्ध शिलालेख के अनुसार लगभग 150 वर्ष पूर्व कार्तिक कृष्ण 12, वि. सं. 1932 को श्री सती माता की वर्तमान मूर्ति की स्थापना इसी जगह हुई थी
. (बिहान न्यूज़24×7 खबरे हमारी,भरोस आपका)